बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारत की प्रागैतिहासिक कला पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. दक्षिण भारत में प्रागैतिहासिक चित्रों का परिचय कहाँ से मिलता है?
2. भीमबेटका क्या है?
उत्तर-
भारत में प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला की खोज का कार्य सर्वप्रथम अंग्रेजों ने ही किया। मनुष्य ने पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात् अपनी असहाय स्थिति को देखा। प्रकृति की महान् व्यक्तियों के सम्मुख उसकी नगण्य चेतना जाग्रत हुई। आज का मानव ही मानसिक व शारीरिक रूप से वनमानुष का सुधरा रूप है और उसने उदर की क्षुधा शान्त करने के लिए शरीर को शीत, ताप और वर्षा से सुरक्षित रखने के लिए तथा भयंकर पशुओं से अपनी सुरक्षा करने हेतु नाना सुरक्षात्मक प्रयत्न किये। चित्रकला का विकास भी मनुष्य के विकास के साथ हुआ है। उसने अपनी जीवन की कोमल भावनाओं में आखेट की गति और पशुओं की मनोहारी छवि का अनुभव किया जिसको उसने रंगों से सनी तूलिका तथा नुकीले पत्थर से गुफाओं तथा चट्टानों की कठोर भित्तियों या समतल शिलाओं पर उकेर कर रख दिया। इस पाषाण युगीन मानव के द्वारा छोड़े हुये पत्थर के अस्त्र एवं औजार तथा चित्र संस्कृति उसकी उस कहानी को बताते हैं, पहले यह समझा जाता था कि प्राचीन मानव के आदिकालीन अवशेष भारत के गुजरात तथा मध्यप्रदेश तक ही सीमित हैं। लेकिन नवीन शोधों के आधार पर सम्पूर्ण भारत में अनेकानेक केन्द्र मिले हैं। 1880 ई० में केमूर की पहाड़ियाँ जो मिर्जापुर के निकट विन्ध्य क्षेत्र में स्थित हैं, यहाँ पर बारहसिंगा, साम्भर तथा गैण्डे के शिकार चित्र मिला। कैमूर की दक्षिणी- श्रेणी के शिला श्रयों के चित्रों को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ बताया है। उसने पर्वतों की गुहाओं तथा कंदराओं को अपना निवास बनाया और इन कंदराओं को गर्म और प्रकाशित करने के लिए उसने पशु की चर्बी तथा लकड़ी को जलाया। उसने इन गुफाओं के अन्दर धूमिल प्रकाश में अपने जीवन की सरस तथा सरल अभिव्यक्ति तूलिका के माध्यम से गुफाओं की खुरदरी दीवारों तथा फर्श पर चित्र बनाकर अंकित कर दी।
दक्षिण भारत में प्रागैतिहासिक चित्रों का परिचय सन् 1892 के "न्यू इम्पीरियल एशियाटिक कर्नाटलीं रिव्यू" में लेख से मिला है, पंचमढ़ी क्षेत्र के चित्रों को प्रकाश में लाने तथा विश्लेषण करने का श्रेय लेफ्टिनेंट कर्नल डी०एच० गार्डन को जाता है, पहले भारत के प्रागैतिहासिक चित्रों की शोध करने वाले विद्वानों में कार्लाइल, काकर्बन, जूनेर, पंचानम मित्र मनोरंजन घोष आदि मुख्य रहे हैं। अधिकतर चित्र लाल व सफेद रंग के हैं, कुछ चित्र हरे व पीले रंगों के भी हैं। हजारों वर्षों में हुई वर्षा, धूप व हवा के कारण काफी चित्र मिट गये हैं परन्तु फिर भी काफी मात्रा में अच्छी दशा में चित्र बच गये हैं, जो कि यहाँ की छतों और दीवारों पर विद्यमान हैं। मानव की प्रगति के आधार पाषाण युग को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. पुरा प्रस्तर युग - इस युग के अवशेष विशेष रूप से औजारों तथा हथियारों आदि के रूप में मिलते हैं, आदिमानव प्रकृति निर्मित गुफाओं में रहता था। यह केवल पत्थर, हड्डी और लकड़ी के मोटे व भद्दे औजार बनाता था। वह घुमकड़ी स्वभाव का था। भारत में बहुत कम अवशेष प्राप्त हुए हैं और जो भी उदाहरण उपलब्ध हैं तो अधिकांश दक्षिणी भारत के क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। भारत में सर्वप्रथम ब्रुसफुट नामक विद्वान ने प्रस्तर युग के औजार की खोज पल्लवरम् नामक स्थान में की थी। उड़ीसा, मैसूर, मद्रास व कश्मीर आदि प्रान्तों में अनेक पुरातन प्रस्तर युगीन स्थलों की खोज हुई। आदि मानव का रूप और आकार की ओर भी आकर्षण था। चित्रों में शिकारी व शिकार को ही मुख्य रूपसे केवल गेरू या सफेद रंग से बनाया गया है।
2. मध्यपाषाण काल - इस काल के सबसे अधिक चित्र हाल में ही भीमबेटका की गुफाओं में प्राप्त हुये। लाल व सफेद रंग अधिकतर प्रयोग हुआ है। हरे व पीले रंगों का प्रयोग भे कहीं-कहीं मिलता है। मध्य प्रस्तर युगीन मानव भी सौन्दर्य की सहज अभिव्यक्ति के लिए निरन्तर प्रयास करता रहा था। मध्यपाषाण काल के चित्र और कहीं भारत में इतनी प्रचुरता से प्राप्त नहीं हुये हैं। हाथी, गाय, घोड़े आदि जानवरों का सुन्दर चित्रण है शिकार करते हुए मनुष्य, सामूहिक नृत्य आदि सामाजिक चित्र भी प्राप्त हुए हैं।
3. नव प्रस्तर युग - इस युग की सीमा रेखाएँ दस हजार ई०पू० से तीन हजार ई०पू० की ओर छोर के आस-पास खींची जा सकती हैं। जो उदाहरण प्राप्त हैं उनमें से अधिकतर बेलारी के आस-पास प्राप्त हुए हैं। उत्तर पाषाण युग का मानव सारे भारतवर्ष में फैल गया और बेलारी उसका प्रधान केन्द्र था इस काल में मनुष्य पत्थरों के यन्त्रों पर पालिश करता था और चाक पर बने मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करता था। कुछ जगहरों पर हिरौंजी के टुकड़े, सिल और पत्थर प्राप्त हुए हैं, जिन पर हिरौंजी को पीसा जाता था। बेलारी तथा कई अन्य स्थानों पर पत्थर पर रेखाओं को खोदकर चित्र बनाये गये हैं। उत्तर पाषाण युग के मानव ने सर्वप्रथम चित्रकला का प्रयोग किया और आज भी उसकी चित्रकला के उदाहरण विभिन्न स्थानों में सुरक्षित हैं।
इन उदाहरणों से आदिकाल की चित्रकला के विकासक्रम का ही ज्ञान नहीं होता बल्कि आदिमानव के जीवन पर भी यथेष्ठ मात्रा में प्रकाश पड़ता है। इस युग की चित्रकला के मुख्य उदाहरण बेलारी, होशंगाबाद, पंचमढ़ी, सिहानपुर, मिर्जापुर, मानिकपुर, पहाड़गढ़, भीमबेटका आदि स्थानों में प्राप्त होते हैं।
4. बेलारी - बेलारी के पास सर्वप्रथम एफ० फांसेट ने प्रागैतिहासिक चित्राकृतियों का विवरण 1892 ई० में प्रकाशित किया। दक्षिणी भारत में बेलारी उत्तर पाषाण युग के मानव का प्रमुख केन्द्र था यहाँ पर एक गुफा में एक शिकार का दृश्य तथा जादू के विश्वास के अनेक प्रचलित चिह्न अंकित किये गये हैं। इन गुफाओं की चित्रकला स्पेन की कोगुल गुप की आदिम चित्रकला के समान ही है।
5. पंचमढ़ी - पंचमढ़ी क्षेत्र के चित्रों को प्रकाश में लाने का श्रेय डी०एच० गार्डन नामक विद्वान को है। पंचमढ़ी भोपाल से लगभग सत्तर किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश राज्य में ही स्थित है। यहाँ गुहावासी मानव की चित्रकारी के अनेक उदाहरण प्राप्त हुए हैं। पंचमढ़ी के शिला चित्रों में पशु तथा आखेट चित्रों के अलावा सशस्त्र युद्ध दृश्यों के चित्र तथा नर्तन-वादन के कार्यक्रमों के चित्र भी मिलते हैं। खोह में पंचमढ़ी की प्रायः सभी शैलियों के चित्र मिलते हैं। आखेट के अन्य दृश्य के अलावा काले रंग में अंकित भैंसे का शिकार भी चित्रित है तथा घरेलू जीवन से सम्बन्धित अन्य अनेक चित्रों को यहाँ दरी दीवारों पर अंकित किया गया है।
6. होशंगाबाद - होशंगाबाद नगर पंचमढ़ी से पैंतालिस मील दूर नर्मदा नदी पर स्थित है। यहाँ आदमगढ़ एक प्रमुख स्थान है। इस पहाड़ी के अनेक शिलाओं पर आदिम प्रकृति के चित्र अंकित हैं। यही घुड़सवारों के दल का चित्र है। यहाँ पर विभिन्न शैलियों में किये गये चित्रण-प्रयोगों के पाँच-छ: स्तर हैं। छलांग लगाते बारहसिंघा का एक अन्य सुन्दर चित्र है। जो गहरी पृष्ठभूमि पर पीली रेखाओं से चित्रित किया गया है। आस-पास में भी बहुत से घुड़सवार, जंगली जानवर तथा वन्य जीवन का सुन्दर चित्रण मिलता है। एक बड़े शिलाश्रय पर एक मोर का विशाल चित्र है जो दो सीधी रेखाओं द्वारा अंकित है। एक स्थान पर वनदेवी का चित्र अंकित है।
7. सिंघनपुर - सिंघनपुर नामक ग्राम मध्य प्रदेश की रायगढ़ रियासत में माढ़ नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित हैं। ये गुफाएँ एक रेतीली चट्टान में स्थित हैं। यहाँ चित्र अधिकतर गेरू व रामराज जैसे भूरंगों से बने हैं। सिंघनपुर के पास एक सुरंगनुमा गुफा में अधिक पशुओं का अंकन किया गया है। जिसमें अधिकर घोड़ा, बारहसिंगा, हिरन, जंगली भैंसों का अंकन किया गया है। यहाँ पर एक गुफा में दीवार पर जंगली साँड को पकड़ते हुए और बछ से छेदते हुए आखेट का एक बड़ा मार्मिक दृश्य चित्रित किया गया है। रायगढ़ जनपद में सिंघनपुर गाँग के निकट कुछ दरिया ( गुफाएँ मिलती हैं, अंकन की सजीवता यहाँ खरी उतरी है क्योंकि संयोजन में मानवकृतियों को भैंसे के चारों ओर संयोजित किया गया है। सहजता, प्रभाव ओज भाव, रेखाओं में उमड़ता दिखाई पड़ता है। युद्ध के सजीव दृश्य पालतू पशु व बाघ युद्ध के सजीव दृश्य उत्तर कर आये हैं। इन चित्रों को गार्डन ने पर्याप्त परवर्ती माना है। प्रतीक चिह्नों का यहाँ पर चित्रण किया गया है।
8. भीमबेटका - मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 40 किमी दक्षिण में भीमबेटका नाम की पहाड़ी स्थित है। यह स्थान होशंगाबाद से भोपाल की ओर जाने वाली रेलपथ पर उब्बेदुल्लागंज स्टेशनों के बीच मियाँपुरसु भीमपुरा नाम का एक छोटा-सा आदिवासी गाँव है। यहाँ करीब 500 गुफाओं में चित्रों का अपूर्व संसार बसा है। भीमबेटका की खोज का श्रेय उज्जैन विश्वविद्यालय के प्रो० वाकणकर को है। प्रस्तर युग से पहले के मानव के अस्त्र-शस्त्र मिले हैं। आदिम चित्रों के दो स्पष्ट स्तर है। यहाँ हिरण, बारहसिंगा, सुअर, रीछ, भैंसे आदि जंगली पशुओं के चित्र अंकित हैं। चित्रों में लाल, काले, सफेद रंगों का प्रयोग हुआ। यहाँ सैकड़ों गुहाओं में आदिम मानव के दैनिक जीवन की कहानी रंग रेखाओं में अंकित है।
9. मिर्जापुर - विन्ध्याचल पर्वत की कैमूर श्रृंखलाओं में स्थित मिर्जापुर जिले में एक सौ से अधिक चित्रित गुफाएँ तथा शिलाश्रय प्राप्त हुये हैं। मिर्जापुर क्षेत्र में स्थित गुफाओं के चित्रों में अधिक स्वाभाविकता और यथार्थता से चित्रित पशुओं में गैंडा, बारहसिंगा तथा हिरन आदि पशुओं की चित्रण किया गया है। इस क्षेत्र में अधिकांश चित्र गेरू, हिरौंजी या कोयले से बनाये गये हैं। पूर्वी देशों की प्राचीन सभ्यता के विकास पर भी प्रकाश पड़ता है।
10. मनिकापुर - यह स्थान बाँदा जिले के अन्तर्गत आता है। बाँदा क्षेत्र में ही सरहाट करियाकुण्ड व कर्पटिया भी प्रागैतिहासिक चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। करियाकुण्ड में धनुर्धारियों के दल को बारहसिंगा का पीछा करता दिखाया गया है। एक चित्र में पहिये रहित गाड़ी और तीन घोड़ों का अंकन है। मनिकापुर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र में खुले स्थान में गेरू से बने हुये कुछ चित्र प्राप्त हुये हैं।
11. महाड़गढ़ - ग्वालियर से लगभग 150 किमी दूर मोरेना जिले में पहाड़गढ़ के निकट असान नदी के तट पर एक घाटी में लगभग 10 हजार ई०पू० से लेकर 100 ई० के बीच की गुफाएँ व शिलाचित्र प्राप्त हुये। यहाँ के चित्रों में मनुष्य व जानवर आदि बने हैं। यहाँ के चित्रों में मनुष्य आकृतियों, तीरों, धनुषों व भालों से लैस जैसे हाथी-घोड़ों पर सवार हैं। यही सब हमें नव पाषाण काल के चित्रों में मिलता है। अपनी सफलता के लिए एक अनजान शक्ति की उपासना सतिज आदि अंकों तथा रेखाओं से जादू-टोना आदि करना आदि मानव ने आरम्भ कर दिया था।
12. बिल्लासंरगम - यह गुफा राज्य में स्थित है, अनुमानतः गुफा की समय उत्तर पाषाण युग का आरंम्भिक चरण है। यहाँ पर कुछ हड्डियों के हथियार प्राप्त हुए हैं।
13. हरनीहरन - मिर्जापुर क्षेत्र के विजयगढ़ दुर्ग के पास हरनीहरन एक गाँव है वहाँ पर एक गैंडे का आखेट करते हुए शिकारियों का रोचक चित्र प्राप्त हुआ है। कॉकवर्न महोदय ने हरनीहरन गुफा चित्रों का बहुत परवर्ती मानकर उनका समय ईसवीं शताब्दी तक माना है। हरनीहिरन गुफा के चित्रों में आखेटकों की प्रहार करती हुई मुद्राएँ तथा पशु के सीगों के ऊपर उछले निरस्त्र आखेटकों की नटकीय स्थिति का रोचक चित्रण है।
14. भोपाल क्षेत्र - भोपाल क्षेत्र में धरमपुरी गुफा मन्दिर, साँची, उदयगिरि आदि स्थानों में आदिम-चित्रकला के उदाहरण प्राप्त हुए हैं। इस चित्र में शिकारी का शरीर पैरों तक पत्तियों से ढके होने के कारण भ्रमवश हिरन उनके समीप आ गया अंकित किया गया है।
15. बिहार - बिहार क्षेत्र में चक्रधरपुर नामक ग्राम में आदिम चित्रकला के कुछ उदाहरण प्राप्त हुए हैं। एक चित्र में एक आदमी लेटा है। और कुछ आदमी उसके पास बैठे हैं। यहाँ के चित्रों का समय असित कुमार हाल्दार ने 2,000 ई० पूर्व माना है।
16. बाँदा - बाँदा क्षेत्र में सरहत, मलवा, करियाकुण्ड, अभवा, उल्दन, चित्रकूट आदि स्थानों में शिलाश्रय तथा चित्रित गुफाएँ प्राप्त हुई हैं।
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